संपादकीय : सानु झा (यह लेखक की अपनी राय है)
अभिमान और स्वाभिमान में एक लंबा फासला होता है, परंतु, यह दोनों ही स्वभाव इंसान में शाश्वत रहता है। अगर स्वाभिमान की सीमा पराकाष्ठा पर हो, तो उसके प्रतिबिंब की छाया में अभिमान अंशतः जरूर आ जाता है, और जब स्वाभिमान का स्तर निम्न हो जाता है तो उसके प्रतिबिंब की छाया या तो दयात्मक होती है या फिर घृणात्मक। हम कई परिस्थितियों में किसी के चरणों में स्वयं को साष्टांग दंडवत करवाते हैं। पहला या वह अपना आत्मीय हो, या तो वह अग्रगण्य हो, या तो वह हमसे काफी अभिजात हो या फिर हमसे सामने वाले को कुछ ऐसी क्षति हो गई हो जिसे भूल कर भी करना स्वीकार्य नहीं किया जा सके। शायद नीतीश कुमार हमारे द्वारा दिए गए उक्त कई मनोवैज्ञानिक उदाहरण के सबसे अंतिम उदाहरण से स्वयं को जोड़कर देख रहे हैं; बार-बार अपने समवयस्क प्रधानमंत्री मोदी का पैर छूना दर्शकों, श्रोताओं, पठाकों और तटस्थ राजनीतिज्ञों के लिए मननीय और शोक्य हो सकता है। खास कर उन बिहारियों के लिए जिसका स्वाभिमान सर्वप्रथम रहा है; और कभी नीतीश के लिए भी रहा था। नीतीश के स्वाभिमान की गाथा कुछ इस प्रकार रही है :
अगस्त 1999 में उन्होंने पश्चिम बंगाल के गैसल ट्रेन आपदा के बाद उन्होंने अपने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। फिर 2002 में गुजरात के गोधरा ट्रेन हादसा के बाद भी उन्होंन तत्कालीन राज्य की मोदी सरकार को खूब फटकारा और घटना का जिम्मेदार भी ठहराया। नीतीश अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि को बचाने के लिए मोदी से कन्नी काटने लगे थे, हरियाणा के चुनावी मंच पर जब ना चाहते हुए भी 2010 में नीतीश की तस्वीर मोदी के साथ हाथ उठाते हुए कैप्चर किया गया और सुबह अखबार के प्रथम पेज पर उसे चस्पा किया गया तब नीतीश के शरीर पर अंगारे बरसने लगे। उन्होंने आमंत्रित बीजेपी के नाताओं का भोज भी आनन-फानन में रद्द कर दिया। लिहाजा इसी का नतीजा रहा कि नीतीश 2014 के लोकसभा चुनाव अपने दम पर लड़े और दो सीटों पर सिमटने के बाद लोक-लज्जा को प्राथमिकता देते हुए CM पद से पहली बार इस्तीफा दिया और दलित नेता जीतन राम मांझी को बिहार का बकौल CM संवैधानिक तौर पर नियुक्त किया। तत्पश्चात् प्रशांत किशोर की दखलंदाजी के बाद नीतीश ने पुनः CM पद की शपथ ली। फिर सूबे में महागठबंधन की बुनियाद पर दो धुर विरोधियों का सम्मेलन नदी और नाव के जैसे हुआ अर्थात् राज्य में JD(U) और RJD वाली सरकार बनी। कुछ ही महीनों बाद यह गठबंधन में दरार आई और नीतीश घर वापसी का दलील देते हुए अपने NDA निकेतन पहुंचे। फ़िर BPJ पर JD(U) को तोड़ने का आरोप लगाते हुए पुनः महागठबंधन की सरकार बनायी। फिर इंडिया गठबंधन की इब्तिदा कर स्वयं की अंतरवाँछा की पूर्ति नहीं होते देख एक बार पुनः NDA में वापसी की। नीतीश इसी आगत और प्रत्यागत वाली छवि से स्वयं की नजर से PM मोदी की नजर से नजर नहीं मिला पर रहे हैं। अगर किशोर वर्ग इस लेख को पढ़ रहे हैं तो इस प्रकरण को रिलेशनशिप के नजर से अगर देखते हैं तो वह काफी प्रासंगिक होगा। जहाँ एक लड़का और एक लड़की वर्षों से रिश्ते में होते हैं, लेकिन लड़की का हमसफर एक वक्त के लिए बेवफा होकर दूसरी लड़की के पास जाता है, फिर वह यही प्रक्रिया दोनों प्रेमिकाओं के साथ अनवरत करता हैं लेकिन उसकी पहली मासुका उसे हर हाल में अपनाने से कतराती नहीं है; उसे पहले के जैसे ही अपनाने का हिम्मत रखती है। तब उस लड़के की क्या गति अपने हमसफर को लेकर होती होगी; वह उससे आँख में आँख मिलाने से भी कतराते होगा और माफी मांगते समय पाँव के तरफ जरूर झुकता होगा। यही हाल अब नीतीश कुमार का हो गया है। यहाँ वह मोदी के पाँव पर तो झुकते ही हैं बल्कि बार-बार “अब कहीं नहीं जायेंगे” का नारा हमेशा बुलंद करते हैं।

Author: Neutral Journalism



